किसी चाँद को देखकर उठा था ज्वार मेरे हृदय में भी स्नेह का ,परन्तु ग्लानि है कि उसे राहू निगल गया ग्रास बनाकर फिर भाटा गिरा हृदय रूपी सागर में।

क्या प्रेम ही एकपक्षीय था ???

टिप्पणियाँ