हमारे वो सिद्धांत जो हमें गणित के नियमों के तरह सत्य प्रतीत होते थे,जो हमारे शरीर के अंग के तरह अत्याज्य बन गये थे,आज वस्त्र के तरह शरीर से पृथक होते जा रहे हैं और हम चकित हो कर केवल आँसू बहा रहे हैं......

रक्षा करें ब्रह्म देव. सन्तुष्ट करें,प्रकाशित कर दें।

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